हर नजारे में ये तनवीर कहां होती है.
मुहम्मद शाह का जन्म सन् 1702 में हुआ था. उसका पूरा नाम अबु अल फतह रोशन अख्तर नसीरूद्दीन मुहम्मद शाह था. 27 सितम्बर सन् 1719 को वह सिंहासन पर बैठा. उसके शासन काल में बंगाल, बिहार, उड़ीसा, अवध तथा दक्कन के भाग मुगलिया सल्तनत से अलग हो गये. वह हरदम शराब व शबाब में मस्त रहता. सन् 1739 में हुए नादिरशाह के आक्रमण ने मुगल सल्तनत के ताबूत में अंतिम कील ठोंकने का काम किया. नादिरशाह ढेर सारे हीरे जवाहरात के साथ साथ मुगलों का इतिहास प्रसिद्ध तख्त -ए-ताउस भी अपने साथ ले गया. विश्वप्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी ईरान पहुंच गया.
मुहम्मद शाह ,जिसने अपने पूरे शासन काल में एक भी लड़ाई नहीं लड़ी , वह पशुओं की लड़ाई का दीवाना था. उसका हरम मीलों लम्बा था, जिसमें पुरूषों का प्रवेश वर्जित था. जब बादशाह एक बार अपने हरम में प्रवेश कर जाता तो महीनों वहीं पड़ा रहता. राज काज वजीर व सिपाहसलार चलाते .राजस्व सरकारी कोष में कम अपने कोष में ज्यादा डालते .यही कारण था कि नादिरशाह को देने के लिए दो करोड़ रूपये भी राज कोष में नहीं थे .इसलिए नादिरशाह ने दिल्ली की आम जनता को लूटकर बेशुमार दौलत एकत्र किया .बाइस हजार लोग मौत के अगोश में समा गये .मुहम्मद शाह की रंगरेलियां बदस्तूर जारी रहीं .इन्हीं रंगरेलियों की वजह से उसका नाम मुहम्मद शाह रंगीला पड़ा था .
हरम से निकल वह सीधे दरबार में किसी न किसी सुन्दरी के साथ पहुंच जाता. दरबार में उसके आदेश पागलों जैसे थे.वह अचानक आदेश देता कि जितने कैदी हैं, उन्हें छोड़ दिया जाय और इनके एवज में दुसरे लोगों को जेल में डाल दिया जाय. सिपाही सड़क चलते हुए लोगों को पकड़ उन छोड़े हुए कैदियों के बदले जेल में डाल देते. वह कई बार भरे दरबार में अपने वस्त्र उतार फेंकता. देखा देखी दरबारी भी यही करते. नंगों की फौज की मौज हो जाती. दरबार में हीं पीने पिलाने का दौर शुरू हो जाता.
दिल्ली में मुहम्मद शाह रंगीला हर उस लड़की या औरत को अपने हरम में मंगवा लेता था जो उसे जंच जाती थी. हिन्दू औरतें लम्बा घूंघट निकालने लगीं .मुस्लिम महिलाएं बुर्के के बगैर बाहर नहीं निकलतीं. त्रस्त लोग अपनी चारदीवारी ऊंची करने लगे. कहीं से भनक मिलने की देर होती, उसकी सनक उस पर सवार हो जाती. बादशाह के अनुचरों का दिल्ली के चप्पे चप्पे पर पहरा था. पता चलते हीं वे पलक झपकते हीं उस औरत या लड़की को बादशाह के हरम में पहुंचा देते.
मुहम्मद शाह रंगीला कानून बनाने व तोड़ने में माहिर था. वह किसी भी व्यक्ति को वजीर बना देता , चाहे उसमें योग्यता हो या न हो. उसने अपने एक घोड़े को मंत्री पद दे रखा था, जिसे बिला नागा दरबार में हर रोज हाजिर किया जाता था. कई बार ऐसा भी देखा गया कि शाम को उसने लोगों को ओहदे व इनामात बांटे, पर सुबह उनसे तमाम इनामात व ओहदे छीन लिए. वह खब्ती आदेश देता, कल सभी जनाना कपड़े पहन दरबार में आएंगे. सभी को आना पड़ता.
सनकीपन से इतर मुहम्मद शाह रंगीला ने कुछ अच्छे काम भी किए हैं. औरंगजेब के समय जो मौसिकी जमीन्दोज हो चुकी थी, उसे बाहर लाने व फिर से सही मुकाम पर पहुंचाने वाला रंगीला हीं था. उसने हीं दरबार में कव्वाली गाने की परम्परा शुरू की. ख्याल गायकी को प्रोत्साहित किया. दरबारी मुजरे उसी की देन थी. शेरवानी पहनने की शुरूआत उसी के समय हुई.
अत्यधिक शराब पीने से उसकी आंतें, लीवर सड़ गये. 46 वर्ष की अल्पायु में दिनांक 26 अप्रैल सन् 1748 को मुहम्मद शाह रंगीला दम तोड़ गया. उसकी सीधी सादी मजार सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया के मजार के पास बनाई गई. हजरत निजामुद्दीन औलिया की मजार पर बहुत से लोग आते हैं, चादर चढ़ाते हैं, मन्नत मांगते हैं,पर मुहम्मद शाह रंगीला की मजार पर कोई नहीं आता.सिर्फ मनोरोगी महिलाएं आती हैं, जो इस मजार पर पहुंच रूहानी सुकून महसूस करती हैं. चलते चलते साहिर होशियारपुरी का एक शेर -
रूह को शाद करे, दिल को पुरनूर करे,
हर नजारे में ये तनवीर कहां होती है?
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