लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह .

30 जुलाई सन् 1822 को जनमें वाजिद अली शाह सन् 1847 में लखनऊ के बादशाह बने थे. 9 साल बाद हीं अंगरेजों ने उनको अकर्मण्य बादशाह बताकर बादशाहत से मुक्त करा दिया. उन्होंने अपने अन्तिम दिन कलकत्ता के मटिया बुर्ज में निर्वासित जिन्दगी जीकर बिताई. मटिया बुर्ज में दो इमारतें - शारदा मंजिल और राधा मंजिल उनके द्वारा बनवाई गयी थी. इन इमारतों में राधा कृष्ण के नाटक खेले जाते थे .
राधा कृष्ण पर उन्होंने एक नाटक लिखा था, जो उन दिनों काफी लोकप्रिय हुआ था. कृष्ण का अभिनय वह स्वंय करते थे. वे लखनऊ में गणेश और राधा कृष्ण की पूजा में स्वयं भाग लेते थे. बजरंग बली हनुमान की शान में उन्होंने बड़े मंगल की परम्परा की नींव डाली थी. उनके राज में लखनऊ में पूरे  13 दिन तक होली  महोत्सव चलता था.
आज असहिष्णुता बनाम सहिष्णुता की चर्चा सरे आम हो रही है. हिन्दू मुस्लिम एकता के बीच मजहब की दीवार उठाई जा रही है. ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने निश्चय किया है कि वह हर वेल्टाइन डे के दिन नवाब वाजिद अली शाह के नाम पर धर्म निरपेक्ष दिवस मनाएगी.यह सराहनीय कदम होगा .इस दिन उनके लिखे नाटक राधाकृष्ण का मंचन होगा. अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे.
गंगा जमुनी तहजीब को अंगीकार करने वाले वाजिद वली शाह का इंतकाल सन् 1887 में मटिया बुर्ज में हो गया था.  आज भी अवध की औरतें उनकी शहादत के दिन को मातम मनाती हैं.
मिट मिट के मोहब्बत में तेरी,
यूं तुझको पुकारे जाते हैं.
कट कट के दरिया के तह में,
जिस तरह किनारे जाते हैं.
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