अति प्राचीन नगर -कलकत्ता.

यह नगर महाभारत काल से अस्तित्व में है. यहां के राजाओं का कौरवों के पक्ष से लड़ने का दृष्टान्त आता है. अकबर के राजस्व कागजातों में भी इसका जिक्र आता है. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सर्वप्रथम सुतानूटि, कोलिकाता और गोविन्दपुरी में अपने व्यापार का आधार केन्द्र बनाया. इन जगहों का विकास प्रेसिडेंसी सिटी के रुप में किया गया. अंग्रेजों ने सन् 1756-57 के दौर में दो बार के युद्ध के पश्चात् इन जगहों को नवाब सिराजुद्दौला से छीना था. यह जगह calcutta के रुप में जाना गया. इस नाम की व्युत्पति यहां के काली घाट मन्दिर से हुआ बताते हैं. कहते हैं कि जब शिव सती के पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से ले जा रहे थे तो यहां पर उनका हाथ गिरा था, जिससे इस जगह को काली हाथ कहा जाने लगा. यही काली हाथ कालान्तर में काली घाट बना. काली घाट से प्रेरित हो एक खास जगह को कोलिकाता कहा जाने लगा. हिन्दी में इसे कलकत्ता कहा जाने लगा,पर बंगाली लोग इसका उच्चारण कोलकाता हीं करते थे. सन् 2001 से इसे सरकारी फाइलों में ,बोलचाल में अब पूरे भारत में कोलकाता हीं कहा जाने लगा है.
कोलकाता का आधुनिक स्वरूप अंग्रेजों व फ्रांसिसीयों द्वारा दिया गया है. यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं - अजायब घर, काली घाट,  बिड़ला तारामंडल, विक्टोरिया मेमोरियल, जू और हबड़ा का पुल. साम्यवाद की जननी रही इस नगरी को सिटी आफ जाॅय, पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार ,महलों का शहर और पूरब का मोती आदि कई विशेषणों से नवाजा गया है. बंगाल के पुर्नजागरण के दौरान इस शहर ने साहित्य की नई ऊंचाइयों को छुआ. बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, माइकल मधुसूदन दत्त, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, काजी नजरूल इस्लाम व शरत् चन्द्र चट्टोपाध्याय ने आधुनिक बंगला साहित्य की नींव रखी. यहां हिन्दी फिल्मों की दीवानगी जगजाहिर है, पर बंगला फिल्मों का कला पक्ष हिन्दी फिल्मों पर हावी है. यहां के  सत्यजीत रे, मृणाल सेन ,तपन सिन्हा,अपर्णा सेन,  ऋत्विक घटक, रितुपर्णो घोष का नाम विश्व के महान् निर्देशकों की फेहरिस्त में शामिल है. चावल और मछली का झोल वाले इस कलकत्ता को रसोगोला और मिष्टी दोई (मीठी दही) के लिए भी जाना जाता है. दुर्गा पूजा यहां का प्रमुख पर्व है, जिसे देखने के लिए देश विदेश से हजारों लोग आते हैं. औरतें तांत की साड़ी पहनती हैं. पुरूष वर्ग एक विशेष अन्दाज में धोती बांधते हैं, जिसका एक खूंट पकड़ कर चलते हैं. अब पाश्चात्य परिधान की धूम है ,जिसे चाहने वाले 90 प्रतिशत लोग हो गये हैं.
कलकत्ता की प्रगति 1960 - 90 तक की अवधि तक एकदम क्षीण हो गई थी. आए दिन के हड़तालों के कारण लोग अपने कारोबार अन्यत्र शिफ्ट करने लगे थे. बिहार, उत्तर प्रदेश के लोग रोजगार के लिए कलकत्ता की बजाय पंजाब की ओर रूख करने लगे थे. भारत की उदारवादी नीति ने अब 1990 के बाद से इस शहर को नई दिशा दी है. उत्पादन बढ़ने के साथ बेकार श्रमिकों को रोजगार मिला है.फेरी वालों का हीं व्यापार 9 हजार करोड़ के पार पहुंच गया है. भारत सरकार की look east नीति के कारण हीं सिक्कीम के रास्ते चीन से व्यापार बढ़ा है, जिसके चलते कलकत्ता को नई संजीवनी मिली है.
कलकत्ता के लोगों में Traffic sense गजब का है. लोग यातायात नियमों का पालन गीता या कुरान की तरह करते हैं. यहां जाम तो लग सकता है, पर नियमों में कोई कोताही नहीं होगी. यदि कोई नियम के विरूद्ध जाता है तो उसे सबक सिखाने वाले कई मिल जाएंगे.यही  कारण है कि मेट्रोपोलिटन शहरों में से एक कलकत्ता में दुर्घटना की दर बहुत हीं कम है. मेट्रो रेल यहां सबसे पहले चली थी. यहां के तीन बड़े रेलवे स्टेशन हैं,- सियालदह, हबड़ा और कलकत्ता, जहां से दूरगामी ट्रेनें चलती हैं  .
जनसंख्या के दबाव के चलते और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते कोलकाता शहर की सेहत विगड़ने लगी है. पर्यावरण विद इस शहर का मिजाज दुरुस्त करने के लिए अथक प्रयत्नशील हैं तो कवि अभी अपनी  चिन्ता प्रकट कर रहे हैं -
ए खाने आकाश नेई,
ए खाने बताश नेई.

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