नटवर लाल को पकड़ने के लिए आठ राज्यों की पुलिस पीछे पड़ी थी.

9 बार पकड़े गये और आठ बार फरार हुए ठगी का बादशाह नटवर लाल का वास्तविक नाम मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव था. वैसे वह तकरीबन 50 फर्जी नामों से ठगी कर चुका है. उसने धीरू भाई अम्बानी, टाटा, बिरला के साथ साथ अनगिनत सरकारी कर्मचारियों को अपने ठगी का शिकार बना चुका है. उसने ताजमहल को तीन बार, लाल किला को दो बार, राष्ट्रपति भवन को एक बार विदेशियों को बेच चुका है. एक बार संसद भवन को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के फर्जी हस्ताक्षर से बेंच चुका है.
नटवर लाल का जन्म बिहार के सीवान जिले के वंगरा गांव में हुआ था. वंगरा गांव पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के गांव जीरादेई से लगभग 2 km की दूरी पर है. कहा जाता है कि एक बार जीरादेई में नटवर लाल राजेन्द्र प्रसाद से मिलकर अपनी ठगी का हुनर उन्हें  दिखा चुका है. उसने राजेन्द्र प्रसाद के हस्ताक्षर के हूबहू 5 फर्जी हस्ताक्षर कर दिए, जिसे देखकर स्वंय राजेन्द्र प्रसाद भी दंग रह गये थे. उसने राजेन्द्र प्रसाद से उसे मात्र एक बार विदेश जाने देने की मांग की,ताकि वह अपनी ठगी से देश का सारा कर्जा उतार देने में कामयाब हो सके.
नटवर लाल बातें करने में माहिर था. उसकी बातों से प्रभावित हो लोग उसके झांसे में आ जाते थे. उसने एक बार जज से भी कहा था कि वे उसे अपने साथ एक बार दस मिनट बात करने दें . बात करने के बाद जज महोदय अपना फैसला उसके पक्ष में देंगे. जज ने इसकी इजाजत नहीं दी, शायद उन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं था या नटवर के पूर्व कारनामों से वे डर गये थे.
नटवर लाल पर ढेर सारी पुस्तकें लिखीं जा चुकी हैं. एक फिल्म भी बनी थी -मि. नटवर लाल. इस फिल्म के हीरो थे -आज के मिलेनियम स्टार अमिताभ बच्चन. नटवर लाल को 113 साल की सजा हुई थी.यदि वह सारी सजा एक साथ काटता तो अगले जन्म में बालिग होने के बाद उसे फिर सजा काटनी पड़ती . यह स्थिति तब होती जब 30 मामलों की सजा होनी अभी बाकी थी. वह नाटकीय ढंग से अपराध करता, नाटकीय ढंग से फरार होता और नाटकीय ढंग से हीं गिरफ्तार भी होता . कुर्की जब्ती के दौरान उसका घर खण्डहर में तब्दील हो गया था. आजकल पूरे गांव का गोबर और कूड़ा करकट वहां फेंका जाने लगा है.
नटवर लाल को एक बेटी थी, जिसकी शादी बहुत पहले रांची में हो गई थी. पत्नी का देहान्त हो चुका था.रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया था.  फिर भी वह ठगी किसके लिए करता था? वह अपने को राबिनहुड कहता था. वह ठगी का धन जरूरतमंदों में बांट देता था. एक बात और विशेष थी कि नटवर लाल की ठगी कभी हिंसक नहीं थी. उसने आज तक कोई हत्या नहीं की. कैद से उसका अंतिम पलायन 24 जून 1996 को हुआ था, जब उसे कानपुर जेल से इलाज के लिए एम्स लाया जा रहा था. उसके भाई का कहना है कि उसकी मौत पलायन के कुछ दिनों बाद रांची में हो गयी थी. वही उसका दाह संस्कार किया गया था.
पुलिस फाइलों में आज भी नटवर लाल जिन्दा है, क्योंकि उसके मरने का कोई पुख्ता सबूत नहीं है. जब तक पुख्ता सबुत नहीं होगा, आठ राज्यों की पुलिस उसकी तलाश करती रहेगी.
किसी नजर को तेरा इन्तजार आज भी है.
कहाँ हो तुम , ये दिल बेकरार आज भी है.
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