जलेबी खा के देखा, न खा के देख लिया.
जन्मदिन, मुंडन, यज्ञोपवीत ,विवाह ,स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस,होली, दीवाली ,कोई भी पर्व या त्योहार हो ,जलेबी नहीं तो कुछ भी नहीं . यह रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन ,हर नुक्कड़ गली की शान है. यह अमीर हो या गरीब-हर तबके की मिठाई है. जात पात, ऊंच नीच से परे इस सर्व सुलभ मिठाई के सभी दीवाने हैं. इसे एक समाजवादी मिठाई कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ,क्योंकि जलेबी के ठेले पर रिक्से वाले ,टैक्सी वाले ,कार वाले ,छात्र,वकील ,इंजीनियर ,डाक्टर ,चपरासी सभी टूट पड़ते हैं .सब को एक हीं रेट यह जलेबी मिलती है . रेट एक, स्वाद एक.
जलेबी से मेरा प्रेम बहुत पुराना है. गांव के मेले में मैंने बचपन में पहली बार इसका स्वाद चखा था. उन दिनों यह चार आने के एक पाव मिलती थी. दुकानदार बड़े हीं आकर्षक आवाज में कहते, "चार आना पउआ ,पेट भरुअवा." गरम गरम जलेबी अक्सर नसीब वालों को हीं मिलती है. मेरा गांव कस्बे से तकरीबन सवा घंटे पैदल और आधा घंटा साइकिल की दूरी पर है. उन दिनों कार या बसें नहीं चलती थीं. मेरे मझले बेटे की उम्र दो या तीन साल थी. उसने एक दिन खेल खेल में मेरे बड़े भाई से कह दिया ,"ए पिताजी! गरम गरम जलेबी कइसन होखेला? (पिताजी, गरम गरम जलेबी कैसी होती है) " भाई साहब ने हर चन्द कोशिश की कि उसे गरम जलेबी खिलाएं ,पर अफसोस रेवती कस्बे से आते आते वह ठंडी हो जाती थी.
जलेबी देश काल परिस्थिति के अनुसार अपना साथी बदलती रहती है. लखनऊ, बरेली में यह दही के साथ, गोरखपुर में दूध के साथ और भोपाल में पोहे के साथ खाई जाती है. राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर को दूध जलेबी बहुत पसंद थी. जलेबी पारगेटिब होती है. रात को सोते समय यदि सौ ग्राम जलेबी खा ली जाय तो कब्ज से राहत मिलती है. सिर दर्द के लिए रामवाण दवा है. मधुमेह के रोगियों के लिए यह दुश्मन है. मधुमेह के रोगी भूलकर भी इसे न छुएं.
मेरे मित्र, मेरे नाम राशि शंकर दयाल मिश्र एक दिन मुझे पार्क में मिले. बातों बातों में बोल पड़े, "आपको पता हीं है कि मैं कितना सीधा शरीफ इंसान हूं. " मैंने तपाक से कहा ,"हां,बिल्कुल जलेबी की तरह, " हम दोनों हंस पड़े. किसी की शराफत पर कटाक्ष करना हो तो तुरन्त कह दीजिए, "आप तो जलेबी की तरह सीधे हो . " मुहावरा कुछ भी हो, जलेबी बेशक टेढ़ी हो, परंतु जलेबी का तासीर, इसका अंदाज शरीफों जैसा है. यह मुंह में जाते हीं करारी होते हुए भी घुलने लगती है. तिल तिल घुल कर हमें परमानन्द की प्राप्ति कराती है. अपनी अस्मिता खोकर हमें एक अवर्चनीय सुख का एहसास कराती है.हां अगर जिन्दगी जलेबी की तरह उलझ गई है तो उसका सामना करना चाहिए -
अब जब जलेबी की तरह उलझ गई है, जिंदगी ,
तो फिर क्यूं न चासनी में डुबोकर उसका मजा ले हीं लिया जाय.
जलेबी उत्तर भारत, पाकिस्तान, मध्य पूर्व एशिया का लोकप्रिय व्यंजन है. इसका आकार पेंचदार व स्वाद करारा मीठा होता है. अब इसकी गूंज स्पेन तक जा पहुंची है. आजकल खोआ पनीर की भी जलेबी मिलती है. इसका प्राचीन नाम कुण्डलिका है. रघुनाथ कृत "भोजन कौतूहल " में इसे "जल वल्लिका "कहा गया है. इसी जल वल्लिका का अपभ्रंश जलेबी हुआ. फारसी व अरबी में इसे जलाबियां कहा जाने लगा. महाराष्ट्र में इसे जिलबी और बंगाल में जिलपि कहा गया. अंग्रेजी में इसे क्या कहेंगे ? अंग्रेजी के जानकार बताएंगे मेरे बिचार से तो इसे Sweet coil कहना वाजिब होगा. विदेशी हैरान व परेशान होते हैं कि कुंडली के अंदर कैसे रस पहुंच जाता है ? काका हाथरसी इसका माकूल जवाब देते हैं.
अंग्रेज रह गये दंग इसे किस तरह बनाते,
ताजुब्ब है अंदर शरबत कैसे हैं घुसाते?
बैरा बोला, सर, इनको आर्टिस्ट हैं बनाते,
बन जाती जब तब इंजेक्शन से रस पहुंचाते.
इसे बनाना आसान है, पर खाना थोड़ा पेचीदा है. इसे आप मुंह खोल जोर से काटेंगे तो रस के फुहारे आप पर कम सामने वाले पर ज्यादा पड़ेंगीं.आपका रोमांस इस जलेबी से टूट सकता है, जब आप डायबिटिज या ओबेसिटी का शिकार हो जाएं. अतः आप सेहत का ख्याल रखें .यदा कदा हीं जलेबी का सेवन करें. फैज साहब से माफी मांगते हुए उनके शेर में तब्दीली करता हूं -
आस उस दर की टूटती नहीं,
खा के देखा, न खा के देख लिया.
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