सब ठाठ धरा रह जाएगा

 इंद्रासन तेली का घर मेरे घर से दक्खिन था । जब से मैंने होश सम्भाला इंद्रासन तेली को लंगड़ हीं देखा । वे कोल्हू चलाते थे । उनके हाथों में बला की ताकत थी । वे कोल्हू के जुआठ को दोनों हाथों से पकड़ उचक जाते । उचकते हीं वे कोल्हू की अपनी सीट पर होते । हाथों की ताकत यहां उनकी बेइंतहा मदद करती । हाथों की ताकत से उनका अधर और पैर अपनी मंजिल पर एक साथ पहुंच के दम लेते ।  कोल्हू का बैल उनकी एक टिटकारी से चल पड़ता । इंद्रासन तेल टिटकारी के अलावा आव रे बेटा , चल रे बेटा भी कहते जाते ।   बैल व इंद्रासन तेली के सम्मिलित प्रयास से तेल की धार बर्तन में गिरने लगती । बैल की आंखों पर पट्टी बंधी होती । उसे निरंतर गोलाई में चलते जाना होता । मुझे नजदीक से यह क्रिया देखने की उत्कंठा होती । मैं जैसे हीं पास जाने की कोशिश करता , इंद्रासन तेली बोल उठते - बबुआ तनी दुरे रहो । आज रिटायर होने के बाद मैं सोचता हूं कि हम सभी कोल्हू के बैल हैं ।   बचपन के खेलकूद को दरकिनार कर दिया जाय तो पढ़ाई लिखाई से लगायत नौकरी करने , बच्चों की परवरिश करने तक हम कोल्हू के बैल हीं थे । अब हम नाती पोते के साथ इन्ज्वाय कर रहे हैं तो वह जिंदगी का बोनस जी रहे हैं । पता नहीं कब कैसे परवाना आ जाय और हम चार कंधे पर सवार हो चल पड़े । सब ठाठ धरा रह जाएगा , जब लाद चलेगा बंजारा ।  इंद्रासन तेली का एक हीं बेटा था । कैलाश नाम था उसका । दो बीघा जमीन थी । उसी में कैलाश रमा होता । जमीन भी अपनी उर्वरक क्षमता के हिसाब से उसे हर साल रिटर्न गिफ्ट देती थी । साल भर खाने का अनाज कोठिला में जमा हो जाता । कोल्हू से नून तेल का खर्च चल जाता । इंद्रासन तेली की दो बेटियां भी थीं - विदवतिया और सोनिया । इनमें से विदवतिया की शादी हो गयी थी । सोनिया मेरी हमउम्र थी ।   पांचवी पास करने के बाद मैं कलकत्ता आगे की पढ़ाई के लिए चला गया था । अगले साल गांव आने पर पता चला कि सोनिया की भी शादी हो गई थी । कैलाश का जब बेटा हुआ तो दोनों बहनें आईं थीं - नेग लेने , सऊरि लीपने और "कंगन लेबो हे बबुआ के बधाई " गीत गाने । सब कुछ हंसी खुशी चल रहा था । तभी इस हंसते खेलते परिवार को ग्रहण लग गया । इंद्रासन तेली व कैलाश का ईगो क्लैश होने लगा । बाप बेटा का सम्बंध तिरसठ से छत्तीस के आंकड़े पर पहुंच गया । तीर गांव मीर गांव वाली बात होने लगी ।  बाप बेटे का यह झगड़ा उग्र रुप धारण कर लिया । इंद्रासन तेली ने कैलाश को अपनी सम्पति से बेदखल कर दिया । बेटे को घर छोड़ना पड़ा ।  वह अपने बच्चों समेत अपनी ससुराल चला गया । अब घर में केवल इंद्रासन तेली व उनकी पत्नी हीं रह गये । खेत बटाई पर उठा दिया गया । कोल्हू बेचना पड़ा ।  इंद्रासन तेली दुःख के सागर में ऊभ चुभ होने लगे । अकेले दूनों परानी के लिए घर काटने को दौड़ता । खेती की आय भी सीमित हो गयी । जिस दो बीघे जमीन से पूरे परिवार का पेट चलता था । अब दो परानी के लिए मुश्किल से दो जून की रोटी जुट पाती । बटाई लुटाई में चला जाता । बटाईदार पहले अपना कोठिला भरते । फिर जो बचता उसे इंद्रासन तेली को देते , वह भी बड़ी अनिच्छा से ।  जैसे एहसान कर रहे हों । इंद्रासन तेली उसे अपनी नियति मान स्वीकार कर लेते ।  कहते हैं कि विपत्ति अकेले नहीं आती । इंद्रासन तेली की पत्नी को दिमागी बीमारी हो गई । शीजोफ्रेनिया , इस बीमारी का यही नाम है । शीजोफ्रेनिक लोग हमेशा इस चिंता में रहते हैं कि कोई उनके खिलाफ षड़यंत्र रच रहा है । कोई उन पर तंत्र मंत्र कर रहा है । इंद्रासन तेली की पत्नी रास्ते चलते लोगों से उलझती । उन्हें गाली बकती । गांव के लड़के उस पर पत्थर फेंकते । इंद्रासन तेली की पत्नी पगली तेलिनिया कही जाने लगी ।                        - इं एस डी ओझा                                                      -                                -क्रमशः

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