तमसा रोई बार बार .
तमसा नदी मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के मध्य स्थित कैमूर पर्वत श्रेणी से निकलती है .यह गंगा की एक सहायक नदी है , जो हजारों साल से बहती आ रही है . 265 किमी की दूरी तय कर यह नदी आजमगढ़ होते हुए बलिया के निकट गंगा नदी में मिल जाती है. यह अपने अंतस्थल में कई दर्द समेटे हुए हैं.
इस नदी ने मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार को अपने किनारे मरते हुए देखा है. राजा दशरथ तमसा नदी के किनारे आखेट खेलने आए थे. उसी समय श्रवण कुमार अपने प्यासे माता पिता के लिए तमसा नदी के किनारे आ जल भरने लगे .इस आवाज को राजा दशरथ ने किसी मृग का पानी पीना समझा. शब्दभेदी बाण चलाने में प्रवीण दशरथ ने तीर चलाया और तमसा ने श्रवण कुमार की दर्दनाक मौत देखी.
इसी नदी के किनारे महर्षि बाल्मिकी ने मिथुन रत क्रौंच पक्षी युगल की मौत देखी थी. स्वतः हीं उनके मुंह से कविता बह चली.सुमित्रानंदन पंत ने इस दर्द का इस प्रकार वर्णन किया है -
वियोगी होगा पहला कवि,
आह से उपजे होंगे गान.
उमड़ कर आंखों से चुपचाप,
बही होगी कविता अनजान.
वैसे दुःख तो तमसा को भी बहुत हुआ ,पर उसके पास अभिव्यक्ति हेतु वाणी नहीं थी. उसने कविता नहीं लिखी , मौन रही ; पर मौन भी मुखर होता है .तमसा का मौन आज भी अविरल गति से मुखर हो प्रवाहित हो रहा है.
श्रवण कुमार की मृत्यु के बाद उनके माता पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था - तुम्हें भी पुत्र वियोग होगा. राजा को पुत्र वियोग हुआ. राम, लक्षमण और सीता तीनों का वन गमन हुआ. वन जाते समय उन तीनों ने प्रथम रात्रि तमसा के तट पर हीं काटी थी . महलों में पले बढे़ इन सुकुमारों के कष्ट देख तमसा भी जरूर रोई होगी .
तमसा नदी के तट पर हीं वाल्मीकि ऋषि का आश्रम था, जिसकी तस्दीक संस्कृत कवि भवभूति ने भी की है -
अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यं,
दिनस्वनामनदीं तमसामनुप्रपन्नः ।।
इसी आश्रम में सीता को शरण मिली थीं जब राम ने सीता का परित्याग किया था. सीता का वियोग कौन समझ सकता था ? केवल और केवल तमसा .अग्नि परीक्षा के बाद भी मात्र एक धोबी के कहने भर से सीता का परित्याग करना कहां का न्याय था ? तमसा का हृदय विदीर्ण हो गया होगा.
तमसा के तट पर हीं सती अनुसुइया के तीन पुत्रों (दुर्वासा, दत्तात्रेय, चंद्रमा) की तपस्थली थी. तमसा ने इन ऋषियों के कठोर तप को देखा था . वह उनके दुःख / कष्ट से अवश्य दुःखी हुई होगी.
आज तमसा पुनः दुःखी है. पिछले दो दशकों से इसमें औद्योगिक इकाइयों का अपशिष्ट बहने लगा है. नदी एक गन्दे नाले में तब्दील हो गई है. शैवाल, कीचड़ से यह नदी भर गयी है. गंगा की इस सहायक नदी का अस्तित्व आज संकट में है. कौन करेगा इसका उद्धार ? क्या कोई सुन्दर लाल बहुगुणा आएगा ? जो ताल ठोक के कह सके -
तमसा को अविरल बहने दो.
तमसा को निर्मल रहने दो.
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