वलिदानी प्राणी - डोडो पक्षी.
हिंद महासागर का एक द्वीप -मारीशस.इस द्वीप पर कभी विचरण करते थे -डोडो पक्षी. डोडो कबूतर और फाख्ता के बीच का एक प्राणी जो 1 मीटर ऊंचा और 20 केजी वजनी था. इसके पांव काफी कमजोर थे,जो इसके वजन को सम्भाल नहीं पाते थे .इसलिए यह चलता कम लुढकता ज्यादा था. एक साथ इनके लुढकने का दृश्य बड़ा हीं मनोरंजक होता था. डोडो के एक नहीं कई पंख थे ,जो उड़ने के लिए मुफीद नहीं थे.
पहले डोडो थोडा़ बहुत उड़ लेता था. जब इसका कोई दुश्मन इस द्वीप पर नहीं था, इसलिए आलस वश इसने उड़ना छोड़ दिया. पक्षी होते हुए भी यह थलचर बन गया. थलचर बनने से यह पक्षी एक आसान शिकार बन गया. इसका सर्व प्रथम शिकार मलय नाविकों ने किया. वे इसे एक पवित्र पक्षी मानते थे और इसके पंख को पूजाघर में सजाकर रखते थे. मलय नाविकों के बाद डच लोग 17 वीं शताब्दी के शुरूआत में मय लाव लश्कर के इस द्वीप पर आए. उनके साथ उनके कुत्ते, बिल्ली, सूअर आदि पहुंचे. चूहे भी उनके खाद्यान्नों के साथ पहुंचे .कहीं से मकाक बन्दर भी आए . कुत्ते, बिल्ली, सूअरों ने डोडो का शिकार शुरू किया तो चूहे और मकाक बन्दरों ने उनके अंडों का सफाया करना . थलचर होने के कारण डोडो खुद तो मरा हीं, अपने अंडे जमीन पर देने के कारण अंडों को भी गंवा बैठा. यानी कि पूरी तरह से इसकी वंश वृद्धि रूक गई. हांलाकि इसका मांस पकने पर भी कठोर और खाने में स्वादिष्ट नहीं होता था, पर इतना आसान शिकार कौन छोड़ता ? डच लोगों ने इसका शिकार जारी रखा. अंत में यह पक्षी विलुप्त हो गया. इसे अंतिम बार सन् 1738 में देखा गया था.
डोडो का मतलब पूर्तगाली भाषा में मूर्ख कहा जाता है. यह पक्षी मूर्ख हीं तो था, जो उड़ना छोड़ जमीन पर चलना शुरू किया. यदि यह थोड़ा बहुत उड़ता तो कम से कम अपने अंडे पेड़ों पर घोसलों में रखता, जिससे अंडे बच जाते और उसकी वंश वृद्धि तबाह नहीं होती. डोडा के पास न अकल थी और न शकल . यह कुरूप पक्षी के तौर पर जाना जाता था. इसीलिए इसे डच भाषा में वोल्गवेगेल अर्थात् वीभत्स पक्षी कहा जाता था.
पूर्तगालियों ने इस पक्षी के एक जोड़े को मुगल बादशाह को नजराने के तौर पर दिया था.मुगल चित्रकार उस्ताद मंसूर द्वारा बनाया गया डोडो का चित्र हमारे लिए आज भी एक ऐतिहासिक धरोहर है. आज भी डोडो पक्षी का निशान मारीशस का राष्ट्रीय निशान है. इस पक्षी की प्रतिकृतियां लकड़ी, प्लास्टिक, सोने, चांदी और कीमती पत्थरों का बनाकर बेची जाती हैं .मारीशस आने वाला हर व्यक्ति इन प्रतिकृतियों को खरीदना नहीं भूलता.
अच्छी खबर यह है कि वैज्ञानिकों ने डोडो को डी एन ए के आधार पर जीवित करने का दावा किया है. मैं उम्मीद करता हूं कि अबकी बार इसके पास शकल तो नहीं ,पर अकल जरूर होगी, जिसका इस्तेमाल कर यह अपना जीवन बचा सकेगा .आने वाली पीढ़ियां न तो इसकी अस्थियों की निशानी ढूंढेंगी और न इसे बलिदानी कहेंगी. फिलहाल मारीशस के कवि जनार्दन कालीचरण तो यही कहते हैं -
धन्य हुई है जाति तेरी,
अस्थियों की निशानी से.
धन्य हुई है धरती यह,
तुझ जैसी बलिदानी से.
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