ड्रेकुला के महल और मकबरे अब पर्यटकों के लिए तीर्थ स्थल बन गए हैं .

आज भी बच्चों को ड्रेकुला की कहानियाँ सुनाई जाती हैं, ताकि बच्चा डर जाए और जिद न करे. ड्रेकुला, जो खूबसूरत महिलाओं को अपने मोहजाल में फांसकर अपने वीरान किलेनुमा घर में लाता था. मौका मिलते हीं उनके गले में दांत गड़ा उनका खून पी जाता था. ड्रेकुला पर आज 200 से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं. अनगिनत उपन्यास लिखे जा चुके हैं. कुछ सालों पहले आस्ट्रिया में एक प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसमें अकाट्य प्रमाणों सहित ड्रेकुला की सच्ची कहानी बताई गई है. यह किस्सा 15 वीं सदी से शुरू हुआ. सन् 1456 -1462 के मध्य रोमानिया में  ब्लांद तृतीय नाम का एक शासक हुआ था, जिसने लगभग 50 हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. वह अपने विरोधियों को बहुत बुरी तरह से तड़पा कर मारता था, जिसे इम्पिलिंग सिस्टम कहा जाता था. यहीं से लोगों ने उसे बहसी दरिंदा (ड्रेकुला )कहना शुरू किया.
आस्ट्रिया की इस प्रदर्शनी से यह साबित हो गया कि ब्लांद तृतीय अपने विरोधियों का खून नहीं पीता था, लेकिन खून पीने वाली बात इतनी फैला दी गई थी कि बाद के दिनों तक भी यह जन जन में नमक मिर्च के साथ मौजूद रही. वैसे ब्लांद तृतीय सबके लिए क्रूर भी नहीं था. अपनी प्रजा में उसकी छवि एक हीरो की थी. कुछ यूरोपीय इतिहासकारों ने उसे खून पीने वाला क्या कह दिया, यह लेबल उसके साथ हमेशा के लिए चस्पा हो गया. रही सही कसर सन् 1897 में प्रकाशित ब्राम स्टोकर के उपन्यास ने कर दी. ब्राम स्टोकर ने सनसनी फैलाने के लिए ब्लांद तृतीय को औरतों के गले पर दांत गड़ाकर उनका खून पीते हुए चित्रित किया है. सन् 1967 में मैंने भी यह उपन्यास (हिन्द पाकेट बुक्स से प्रकाशित )पढा़ था. बहुत दिनों तक मैं इसकी काल्पनिक दरिंदगी से नहीं उबर पाया था.
आखिर ब्लांद तृतीय के पाप का घड़ा भरा. वह विरोधियों द्वारा पकड़ा गया. उसे टोकाट के किले में कैद कर रखा गया. ड्रेकुला (ब्लांद तृतीय) के कैद वाली जगह की सन् 2009 में पहचान की गई .किले की मरम्मत के दौरान एक सुरंग का पता चला. मिट्टी व चट्टानों को हटाने पर यह सुरंग नजर आई, जिसे पुरात्वेत्ताओं ने ड्रेकुला की कैद की जगह बताई. अब ड्रेकुला के तार इतिहासकार प्रिन्स चार्ल्स से जोड़ रहे हैं . जो भी हो उन दिनों तो ड्रेकुला की कहानी पढ़ खाली दीवारों से भी डर लगता था. अब तक पांच पीढ़ियां ड्रेकुला की कहानी पढ़कर बड़ी हुई हैं .

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