क्या पता कविताओं में पारिजात खिल जाएं ?
कल्प वृक्ष के नाम से मशहूर पारिजात के बारे में कहा जाता है कि यह समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ था , जो इन्द्र - लोक की शोभा बना. पारिजात के पेड़ के पास आकर इन्द्र की अप्सरा उर्वसी अपनी थकान मिटाती थीं .इसे पृथ्वी पर लाने का श्रेय श्रीकृष्ण को जाता है. श्रीकृष्ण रुक्मणि व सत्यभामा का इस फूल के प्रति अनन्य प्रेम देख इसे इन्द्र लोक से लाने के लिए उद्दत हुए थे. श्रीकृष्ण ने पारिजात को लाकर सत्यभामा की वाटिका में इस तरह रोपा कि फूल जब गिरे तो रुक्मिणी की वाटिका में गिरे. इस तरह से उन्होंने रूक्मिणी और सत्यभामा दोनों को खुश कर दिया.आज भी पारिजात के फूल अपनी जगह से दूर हीं जाकर गिरते हैं.
पारिजात को हर सिंगार, शेफाली, शेफालिका और गुलजाफरी भी कहा जाता है. यह वृक्ष 10-15 फीट ऊंचा होता है, पर कहीं कहीं तो 25/30 फीट ऊंचा भी होता है. इसके फूल बड़े हीं आकर्षक होते हैं. इस पेड़ की यह विशेषता होती है कि पूरी तरह से चुन लेने पर भी दूसरे दिन यह फिर फूलों से लद जाता है. पारिजात के फूल देवी लक्ष्मी को बहुत प्रिय हैं. हरिवंशपुराण में लिखा है कि शाख से टूटे पारिजात हीं देवी लक्ष्मी को अर्पित किया जाना चाहिए. यदि इसी सिद्धान्त को हर फूल पर लागू किया जाय तो फूल तोड़ने की नौबत न आए.
रंग आंखों के लिए, बू है दिमागों के लिए,
फूल को हाथ लगाने की जरूरत क्या है?
बेसबब बात बढ़ाने की जरूरत क्या है ?
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रामनगर क्षेत्र के बोरोलिया गांव में पारिजात का एक बहुत बड़ा पेड़ है. इस पेड़ के तने का घेरा 50 फीट और ऊंचाई 45 फीट है . यह विशाल पेड़ एक मिशाल है. इसकी उम्र लगभग 5 हजार वर्ष है. कहा जाता है कि इस पेड़ को पांडवों ने सत्यभामा की वाटिका से ले जाकर बोरोलिया गांव में लगाया था. इस पेड़ की सारी शाखाएँ जमीन की तरफ मुड़ती हैं, पर जैसे हीं ये शाखाएँ जमीन को स्पर्श करती हैं, सूख जाती हैं. वर्ष में एक बार माह जून में सफेद व पीले फूल लगते हैं. इस पेड़ के नीचे लोग अपनी थकान मिटाते हैं .
पारिजात का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर है. इसके बीज पाइल्स रोग में काम आते हैं. इसके पत्तियों के रस में शहद मिलाकर पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है .पत्तियों का रस त्वचा रोग में कारगर होता है. पुराने बुखार में पारिजात की पत्तियों का काढ़ा रामबाण का काम करता है. हृदय रोग, गठिया आदि रोगों के शमन के लिए पारिजात के छाल से दवाईयां तैयार की जाती हैं.
भारत सरकार ने पारिजात के पेड़ को संरक्षित वृक्ष घोषित किया है. आज यह वृक्ष विलुप्त होने के कगार पर है. सबसे त्रासद बात यह कि इस वृक्ष का कलम नहीं लगता. बीज से वृक्ष पैदा करने में वन विभाग रूचि नहीं ले रहा है. भारत सरकार ने इस वृक्ष को बढ़ावा देने के लिए एक डाक टिकट जारी किया है. कहीं ऐसा न हो कि एक दिन यह वृक्ष केवल कविताओं में हीं मिले. इस सम्बंध में कवियत्री ऋता शेख 'मधु ' के कविता की कुछ पंक्तियां उद्धृत की जा रही हैं -
उगी हुई नागफनी का स्वागत कीजिए.
चुभन के डर से अब न दामन समेटिए .
मन जमीं पर गिरेंगे जब असंख्य भाव-बीज,
क्या पता कविताओं में पारिजात खिल जाए?
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