20 साल लम्बी तन्हाई .
औरंगजेब की सबसे बड़ी संतान थी - जेबुन्निसा. उसका जन्म दक्षिण भारत के दौलताबाद में 5 फरवरी सन् 1639 में हुआ था. वह बहुत हीं प्रतिभाशाली बालिका थी. उसने छोटी उम्र में हीं पूरा कुरान कंठस्थ कर लिया था. 14 साल की उम्र से हीं वह कविता लिखने लगी थी .उसके पास एक बहुत बड़ा पुस्तकालय था .वह विभिन्न लिपियों की बहुत सुन्दर और साफ लिखावट कर लेती थी. उसकी मंगनी शाहजहां की अनुशंसा से दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह से तय हुई थी ,लेकिन कम उम्र में सुलेमान की मौत हो जाने से यह मंगनी नहीं हो सकी.
जेबुन्निसा एक सूफी प्रवृति वाली धर्म परायण स्त्री थी. उसे औरंगजेब 4 लाख सलाना भत्ता देता था. इस भत्ते का ज्यादातर हिस्सा वह विधवाओं एंव हज यात्रियों पर खर्च कर देती थी. वह एक अच्छी शायरा भी थी. वह अपनी आमदनी का एक अच्छा खासा हिस्सा शायरों के बेहतर रहन सहन पर खर्च करती थी,जब कि औरंगजेब शायरी और मौसिकी से नफरत करता था ,इसलिए जेबुन्निसा एक छद्म नाम से शायरी करने लगी. छद्म नाम था - मख्फी. वह छुपे तौर पर मुशायरों का आयोजन करवाती थी .इसी मुशायरे में उसकी पहचान शायर अकील खां से हुई .यह पहचान चन्द दिनों में प्यार में तब्दील हो गयी . यह बात औरंगजेब के कान तक पहुंची .उसे जेबुन्निसा का एक अदने शायर से प्रेम करना जंचा नहीं .नाराज हो औरंगजेब ने उसे सलीमगढ़ के किले में कैद कर लिया . उसकी जमींदारी छीन ली . मिलने वाले सभी भत्ते बन्द कर दिए.
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जेबुन्निसा का खतो खतूत अपने विद्रोही भाई अकबर से था.अकबर जो अपने पिता औरंगजेब से विद्रोह कर विदेश भाग गया था, वह जेबुन्निसा के सम्पर्क में था . इसलिए औरंगजेब ने जेबुन्निसा कैद में डाला. वैसे वास्तविकता यह थी कि औरंगजेब जेबुन्निसा का एक अदने से शायर से किया गया प्यार खल गया और उसने अपने विद्रोही पुत्र का बहाना बना उसे कैद में डाल दिया ताकि जेबुन्निसा और उसका प्रेमी फिर दुबारा न मिल सकें .
जेबुन्निसा का लिखा " दीवान -ए-मख्फी ", कुल 5 हजार गजल ,शेर और रुबाइयों का एक विस्तृत संकलन है ,जिनकी एक एक प्रतियाँ फ्रान्स और लंदन के नेशनल लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित रखी गयी हैं. इस दीवान -ए-मख्फी का उर्दू, अंग्रेजी और फ्रेन्च सहित कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है.
20 साल लम्बी कैद जेबुन्निसा ने इस सलीमगढ़ के किले में काटी . आखिरी समय कैद की तनहाइयों में बिताकर वह सन् 1702 में इस दुनियां से रूखसत हुई. कहते हैं कि आज भी उसकी आत्मा अपने प्रेमी से मिलने के लिए भटक रही है.
हसरतें हो गईं राख,
आग अब भी कहीं दबी सी है.
ख्वाब था या गुबार था कोई,
गर्द इन पलकों में जमी सी है.
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