सब ठाठ धरा रह जाएगा (2)
सब ठाठ धरा रह जाएगा (2)
तेलिनिया ईनार (कुएं ) से पानी ले जाती । वो पानी लेकर मेरे घर के सामने से हीं गुजरती । और दिन होता तो वह जरूर पूछती , " का हाल बा हो बबुआ ?" । लेकिन जब से वह बीमार हुई उसके चेहरे पर उद्गिनता साफ झलकने लगी थी । वह लोगों से बचते बचाते निकलने की कोशिश करती । उसे डर होता कि कोई उसके ऊपर भूत दूत न चढ़ा दे । गांव में मनोरंजन का कोई साधन नहीं था । इसलिए सबका मनोरंजन तेलिनिया को छेड़ने से पूरा होने लगा ।
कोई औरत उसे छू देती तो वह पूरा पानी गिरा देती । दुबारा पानी भरने चल पड़ती । वह उस औरत के सात पुश्तों को स्वर्ग से उतार लाती । इतनी बुरी बुरी गालियां देती कि उन गालियों को भी शर्म आने लगती । एक दिन वह पानी सहित मेरे दरवाजे पर चढ़ आई । बोली - " बहिनी ! आपको सुनाई दे रहा है न ? किस तरह से मेरे बेटे का श्वसुर मुझे गाली दे रहा है ?" मां ने कहा - " मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा है ।" वह जोर दे कर बोली ," अब सुनिए कितनी बुरी गाली दी है उस नासपीटे ने अभी अभी मुझे ।"
बड़े होने पर मुझे पता चला कि शीजोफ्रेनिया के मरीज के कानों में ऐसी आवाजें सचमुच आती हैं । उसके बेटे के श्वसुर का गाली देना वास्तव में तेलिनिया का अपराध बोध था , जो उसके अवचेतन मन में गहराई तक बैठ गया था ।
इंद्रासन तेली को कुछ लोगों ने बहकाया । जो जमा पूंजी दो बीघा जमीन थी उसे भी बेच देने के लिए । "दिल ने जिसे पाया है , आंखों ने गवाया है " की तर्ज पर इंद्रासन तेली ने पुरखों से मिली जमीन को औने पौने दाम में बेच दी । अब जाके सही मायने में कैलाश का देश छूटा । पिता ने अब जाकर उसे सही में घर से बेघर कर दिया । पिता को नैतिक तौर पर कोई हक नहीं था कि पुरखों की जमीन उसके वारिश के रहते हुए बेच दे । लेकिन ऐसा हुआ । क्योंकि ऐसा कानून सम्मत था । इसी का फायदा लोगों ने उठाया ।
इंद्रासन तेली भी बहक गये । खेत बेचा गया । पईसा हाथ में आ गया । इंद्रासन तेली हवा में उड़ने लगे । कहते हैं कि रुपया कौआ के पांखि में भी बांध दिया जाय तो वह भी चालाक हो जाता है । इंद्रासन तेली तो आदमी थे । उनको तो चालाक होना हीं था । उनके दिल में भगवत सुनने की इच्छा हिलोर मारने लगी । बड़े जतन से उन्होंने भागवत सुना । इहलोक तो बुरा गुजरा , ऊह लोक तो अच्छा गुजरे । बाभनो को न्योता दिया गया । खूब कचरो डभरो हुआ । बाभनों को सवा सवा रूपए दक्षिणा मिली । बाभन खुश तो भगवान खुश ।
जो पैसा बचा था , उससे रोज पूड़ी सोहारी बनने लगी । परोरा एक गाला तेल में तला जाने लगा । रोज दुआर पर दस ठो आदमी लोगन के जमवाड़ा होने लगा । गांजे की चिलम चढ़ती । गांजे की पिनक पर सवार हो इंद्रासन तेली का मन मयूर गा उठता ," काहें रे ठगिनी नैना झमकावे "।
मेरे पिताजी कहा करते थे , " यदि सुराही में पानी न भरा जाय तो एक दिन वह खाली हो जाएगी । इसलिए बेहतर है कि उसे रोज भरो तब पियो " । इंद्रासन तेली को इस सुराही को भरने का कोई साधन नहीं था । हां , खाली करने का उन्होंने बहुत से संसाधन जुटा लिए थे । एक दिन सुराही खाली हो गई । उमड़ा बादल रीत गया । अब उसमें बरसने की कूवत नहीं रही । इंद्रासन तेली को फांकामस्ती की नौबत आ गयी ।
अब इंद्रासन तेली ने अपने तूणीर से अंतिम तीर निकाला था । अपना घर इस शर्त पर मुसाफिर राजभर को बेचा कि जब तक वे जियेंगे इसी घर में रहेंगे । मुसाफिर ने शर्त मान ली । उनको लगा कि यह घाटे का सौदा नहीं है । इंद्रासन तेली और उनकी पत्नी तो पके आम थे । जब कभी भी टपक सकते थे । वैसे जब तक जिएंगे , एक कोने में पड़े रहेंगे ।
इंद्रासन तेली ने घर बेच के पैसे को बहुत समझदारी के साथ एक घड़े में डाला और उसे दीवार के अंदर दबा दिया । सोचा जब तक जिएंगे , दोनों थोड़ा थोड़ा इसी में से निकालकर खाते रहेंगे । मर जाएंगे तो यह पैसा पंचो का हो जाएगा । लेकिन भगवान को कुछ और हीं मंजूर था । चोरों की घ्राण शक्ति बहुत तीब्र होती है । उन्होंने सूंघ लिया कि खजाना कहां छिपाकर रखा है ? वे एक रात उस पर भी हाथ साफ कर गये ।
इंद्रासन तेली इस सदमे को बरदास्त नहीं कर पाए । वे बीमार रहने लगे । तेलिनिया पागलपन में हीं घूम घूम कर भईया बहिनी से कुछ अनाज पानी का बंदोबस्त करती थी। उसी से इंद्रासन और अपना भरण पोषण करती । एक दिन " उड़ जाएगा हंस अकेला " की तर्ज पर इंद्रासन तेली तेलिनिया को छोड़ इस आसार संसार से विदा हो गये ।
गांव के लोगों ने मिल बहोरि के उन्हें सरजू लाभ दे दिया । सरजू में पानी कम था । इसलिए सरजू लाभ काम न आया । उनका शरीर गिद्धों व कुत्तों के काम आया । उनकी सद्गति नहीं हो पाई । भगवत सुनना भी काम नहीं आया । बेटे ने मुखाग्नि नहीं दी तो सद्गति कहां से होती ?
- इं एस डी ओझा
- क्रमशः
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