बघेली रानी का त्याग.

  28 नवम्बर सन् 1678 .अफगानिस्तान का जमरुद नामक स्थान. जोधपुर के बीमार महाराज जसवन्त सिंह का सैनिक ठिकाने पर निधन. उनके साथ रह रही दोनों रानियां सती होने के लिए उद्दत हुईं. बड़ी मुश्किल से दोनों रानियों को सरदारों ने मनाया. कारण, दोनों रानियाँ गर्भवती थीं .रानियों को सरदार अपने साथ लाहौर लाए ,जहाँ पर 19 फरवरी सन् 1679 को दोनों रानियों ने एक एक पुत्र को जन्म दिया. बड़े शिशु का नाम अजीत सिंह और छोटे का दलथम्भन रखा गया. अब दोनों शिशुओं के साथ रानियों को लेकर सरदार दिल्ली आए.नियम के अनुसार महाराज जसवन्त सिंह के बड़े पुत्र अजीत सिंह को जोधपुर की गद्दी सम्भालनी थी.
दिल्ली पहुंच कर सरदारों को पता चला कि औरंगजेब शिशु अजीत सिंह को मान्यता देना नहीं चाहता है. औरंगजेब ने दिल्ली और जोधपुर के रास्ते में जगह जगह मुगल चौकियां स्थापित कर दीं ताकि कोई शिशु अजीत सिंह को जोधपुर न ले जा सके.जोधपुर के सरदार दुर्गा दास राठौड़, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह , खिंचि के मुकुन्द दास आदि मारवाड़ सरदारों ने आपस में मंत्रणा की. एक योजना बनाई. उन्हीं दिनों बलुन्दा के सरदार मोहकम सिंह की पत्नी रानी बघेली हरिद्वार स्नान कर बलुन्दा लौट रहीं थीं . वे सरदार मोहकम सिंह से मिलने के लिए कुछ दिनों से दिल्ली में रूकीं थीं .योजना के तहत रानी बघेली ने अपनी नवजात बालिका से शिशु अजीत सिंह की अदला बदली कर ली. अब अजीत सिंह को बालिका के कपड़े पहनाकर रानी बघेली बलुन्दा के लिए चल पड़ीं .चूंकि रानी डोली में बैठीं थीं. इसलिए पर्दा नसीं को मुगल चौकियों पर नहीं रोका गया और रानी बघेली निरापद बलुन्दा पहुंच गईं. बलुन्दा में रानी ने शिशु अजीत सिंह की परवरिश लड़की के तौर पर करने लगीं. वे उस शिशु को अपना दूध पिलातीं .अपने हाथों से लड़कियों के कपड़े पहनातीं. एक दिन दुर्योग से दासी ने कपड़े पहनाए .उसने जान लिया कि यह लड़की नहीं लड़का है. बात मुंहा मुहीं फैलने लगी. रानी बघेली शिशु अजीत सिंह को ले कर अपने मायके कालिन्द्री चली आईं. वहाँ उन्होंने बालक अजीत सिंह के लालन पालन का जिम्मा अपने विश्वास पात्र ब्राहम्ण दम्पति पुष्करणी और जयदेव को सौंपा. दैव योग से ब्राहम्णी भी नवजात
शिशु की माँ बनी थी. इसलिए दूध की समस्या नहीं हुई.
शिशु अजीत सिंह बड़े हो कर जोधपुर के सिंहासन पर आरूढ़ हुए ,पर रानी के इस त्याग पर इतिहास कम हीं मुखर हुआ है जब कि पन्ना धाय पर इतिहास जम के बोला है, चिल्लाया है .बघेली रानी ने अपनी कोख सूनी कर जोधपुर के चिराग को बुझने नहीं दिया. मेरी तरफ से रानी बघेली के कर्तब्य पथ पर डटे रहने पर एक  श्रद्धान्जलि -
       तेरे प्यार की तमन्ना गम -ए-जिन्दगी के साए.
       बडी़ तेज आंधियां हैं, ये चिराग बुझ न जाए.
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