डा. मोहम्मद हनीफ खान का गीता प्रेम.

डा. मोहम्मद हनीफ खान का मानना है कि और कोई पढे़ न पढ़े, पर मुसलमानों को गीता जरूर पढ़नी चाहिए. वे अफगानिस्तान में संस्कृत पढ़ा चुके हैं.  वहाँ गीता पढ़ाने पर उन्हें तालिबानों का विरोध सहना पड़ा. डा. हनीफ ने तालिबानों को बताया कि गीता और कुरान में कोई अन्तर नहीं है. जो कुरान के जोे पांच स्तम्भ हैं वे सारे के सारे भगवद् गीता में पहले से मौजूद हैं. ऐसा लगता है कि कुरान भगवद्गीता की ही कार्बन कापी हो.
पहला स्तम्भ -समर्पण, इसका जिक्र गीता के 9वें अध्याय में है.
दूसरा स्तम्भ -एकेश्वर वाद. इसका सत्यापन स्वयं भगवान ने यह कहकर की है कि "एको अहम्  द्वितीयो नास्ति. "
तीसरा स्तम्भ -रोजा या व्रत रखना. इसका महत्व दोनों धर्म ग्रन्थों में समान रूप से है.
चौथा स्तम्भ - नमाज या पूजा करना.
पांचवां स्तम्भ - दान या जकात करना. जकात या दान का महत्व दोनों धर्म ग्रन्थों में समान रूप से है.
डा. हनीफ खान के समझाने पर तालिबान मान गए .साथ हीं उन्हें पूरी सुरक्षा देने का वादा भी किया.
डा.हनीफ का जन्म उत्तर प्रदेश के सोन भद्र जिले के दुधी ग्राम में हुआ था. हाई स्कूल की परीक्षा में फेल हो जाने पर उनके मन में आत्म हत्या के विचार आने लगे. गाँव के हीं लखन शास्त्री ने इन्हें श्री मद् भगवत गीता दी और रोज एक अध्याय पढ़ने की सलाह दी. गीता पढ़कर उनमें एक नई ऊर्जा का संचार हुआ.वे पढ़ाई में जी जान से जुट गए और सन् 1990 के आगमन तक वे संस्कृत से PHD पारंगत हो गए . उन्होंने संस्कृत में बहुत सी किताबें लिखीं. उनकी कई पुस्तकों के लिए उन्हें नामचीन हस्तियों से पुरूष्कार भी मिल चुके हैं -
1994 - गायत्री सुरहफतेहा पुस्तक पर डा. शंकर दयाल शर्मा से.
1996- गीता और कुरान में सामंजस्य -डा.शंकर दयाल शर्मा.
1998- वेदों में मानवाधिकार - उप राष्ट्रपति कष्ण कान्त.
2003- गायत्री मन्त्र का वैदिक उपयोग -केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री एम एम जोशी.
2011- नेएमिनेन्स अवार्ड - पी चिदम्बरम.
2013 - अखिल भारतीय विद्वत परिषद द्वारा " दारा शिकोह " पुरुष्कार. - डा. कर्ण सिंह.
उपरोक्त के अतिरिक्त डा. हनीफ को कांची काम कोठ के पीठाधीश शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती द्वारा "वसुंधरा रत्न "पुरूष्कार मिल चुका है.
डा. मोहम्मद आसिफ खान को पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने संस्कृत भाषा में उनकी प्रवीणता पर खुश हो उन्हें अपने नाम के साथ शास्त्री टाइटिल लगाने की सलाह दी थी . तब से डा. हनीफ ने खान की जगह शास्त्री लिखना शुरू किया. उनकी जेब में हमेशा पाकेट गीता रहती है. उन्होंने मोहम्मद से मो लिया ,हनीफ से ह और खान से न लेकर मोहन शब्द बनाया और रच दी मोहन की गीता और बन गई 700 श्लोकों की एक हिंदी अनुवाद पुस्तिका.  उन्होंने अपने खुद के GPF के पैसों से इसकी 6 हजार प्रतियां तैयार कर मुसलिम समुदाय में वितरित की हैं.  मोहन गीता के अब तक छ: संस्करण छप चुके हैं. आज उनकी वजह से मुसलमानों की रूचि संस्कृत में जगी है. डा. मोहम्मद हनीफ शास्त्री को जमात -ए- हिंद मुसलिम समाज में भाषण देने के लिए जगह जगह बुलाता रहता है. वे हर जगह यही बताते हैं कि वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों में इस्लाम की बुनियादी बातें हैं. कुरान तो गीता का दोहराव है  .
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अन्तर्गत आने वाले राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से वे जुड़े थे. कितनी विडम्बना है कि इस संस्थान से वे जिस पद पर जुडे़ उसी पद पर रिटायर हुए.कोई प्रोमोशन नहीं. कोई आनरेरी पद नहीं . इस बात का डा. हनीफ को आज भी मलाल है और कल भी रहेगा.
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